नैनन में है जल भरा…
नैनन में है जल भरा, आँचल में आशीष।
तुम-सा दूजा नहि यहाँ, तुम्हें नवायें शीश।।
कंटक सा संसार है, कहीं न टिकता पाँव।
अपनापन मिलता नहीं, माँ के सिवा न ठाँव।।
रहीं लहू से सींचती, काया रची सप्रेम।
संस्कारित मन आचरण, अदभुत तेरा प्रेम।।
रात रात भर जागकर, हमें लिया है पाल।
ऋण तेरा जन्मो जनम, सोंचे तेरे लाल।।
स्वार्थ लोभ से है रहित, अंतस स्नेह दुलार.
माँ का अनुपम प्रेम है, शीतल सुखद बयार।।
जननी को जो पूजता, जग पूजै है सोय।
महिमा वर्णन कर सके, जग में दिखे न कोय।।
माँ तो जग का मूल है, माँ में बसता प्यार।
जगजननी के सामने, नतमस्तक संसार।।
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’