नेह के परिंदें
पिंजरें में कैद परिंदों को
दाना-पानी मिलता है
इसका मतलब
ये तो नहीं कि
उनको उड़ना पसंद नहीं।
ऊँची उड़ान का मज़ा
कैसा होता है!..
ये आकाश में उड़ते उस परिंदे से पूछो
जिसकी पिंजरें में
खत्म हो जाती है
आज़ादी की खुशी
सुनो!..परिंदों को बैठने दो
अपनी मुंडेर पर
उन्मुक्त उड़ने दो
बिखेरने दो उन्हें
संगीत के खुले स्वर।
आसमां से इश्क के
चर्चे कौन नहीं जानना चाहता?…
ये स्नेह के परिंदें हैं
नफ़रत नहीं पालते
दिल की खुली रखना एक खिड़की
ये प्यार की खिड़कियों से
झांकते रहेंगे
ये नेह के परिंदें हैं
ये कहाँ जा पाते दूर
नेह नीड़ से…
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)