नेता मुक्तक
नेताओं को दे रखे हैं , सरकार ने बंगले और मोटर कार ।
मगर देश की जनता पर कर्ज की भरमार।
कर्ज़ की भरमार चैन से रह ना पाए।
भूखा रहे परिवार गमों को सह ना पाए।
फसल बोई जानी खेतों में रुपया लिया उधार।
सूद पर सूद लगाकर उनको लूट रही सरकार।
लूट रही सरकार साथ में लूटे साहूकार।
जेब काट के जनता की घूमें लंदन मय परिवार।
लंदन मय परिवार नशे में खूब ये झूमे ।
जनता का यह लहू जिसे पीकर ये घूमे।
ऐसे वतन का हाल क्या होना आखिरकार।
फूलों की महक में वो सुकून नहीं।
मैं जानती हूं आजकल के युवाओं में वह जुनून नही।
जो वतन जो वतन की खातिर ना खौले ,
वह जवानी का खून नहीं।
वतन सोने की चिड़िया ना रहकर रांग का हुआ जा रहा है ।
जो जीते हैं सर्दी सहकर उनके जिगर का खून हुआ जा रहा है
राजनीति को बना लिया है अब चौसर का खेल।
नेताओं के रूप में हुआ गुंडों का मेल।
हुआ गुंडों का मेल, राष्ट्र को कौन बचाय।
चारों ओर अराजकता और अविश्वास फैलाए,
विश्व बैंक में नेताओं ने खाते हैं खुलवाएं।
घोटालों से वतन बापुरा व्याकुल हो चिल्लाए।
व्याकुल हो चिल्लाए ,प्रभु का न्याय ये कैसा।
माई बाप लगता है सब कुछ इनका पैसा।
सांसदों से पूछो कैसे पद ये पाया।
फिल्म अभिनेता बनकर पहले नाम कमाया।
अनभिज्ञ राजनीति से फिर भी टिकट मंगाया।
पैसों की भरमार से भोली जनता को बहकाया।
सपने ,वादे झूठे दिलासे ,झूठी आशा।
कुशल खिलाड़ी राजनीति में फेंके पाशा।
चला जाएगा वतन बेचने रेखाआखिर तेल।
नेताओं के रूप में हुआ गुंडों का मेल।