नेता पैदा करने की मशीन
नेता पैदा करने की मशीन
नेता पैदा करने की मशीन पैदा करना है तो वक्ता पैदा करने की मशीन पैदा करना पड़ेगा। क्योंकि वक्ता ही नेता बनता है या नेता को वक्ता बनना पड़ेगा। वक्ता वक्त की धार को मुट्ठी में कर डालता है। जो वक्त की दिशा पल में बदल डाले वो वक्ता। देश को आज अच्छे वक्ता की जरूरत है या यूँ कहे कि अच्छे नेता की जरूरत है। यूँ तो हम घण्टों बकरबाजी करने की कला में महारत रखते हैं, मगर जब मंचीय भाषण की बात आती है तो अच्छे2 की हवा निकलने लगती है। मनोवैज्ञानिकों ने तो यहाँ तक कह दिया है कि लोग मरना पसन्द करते हैं मगर मंच पर दो शब्द बोलने में डर लगता है। कई लोगों के मंच पर चढ़ते ही जोर जोर से पाँव कांपने लगते है। एक बार मेरा एक स्टूडेंट पहली बार प्रार्थना सभा में कासन देने आया। जोर जोर से काँपता पांव देखकर लग रहा था कहीं गिर न जाये। कक्षा में मैंने पूछा सीताराम पैर बहुत काँप रहे थे। वो बोला हां सर। मैंने कहा पैर से कह देना कल फिर वो प्रार्थना में खड़ा होगा और देखेगा पैर को कि कितना काँपता है? दूसरे दिन वो प्रार्थना सभा में गया और पैर ने काँपना बन्द कर दिया। कहा भी जाता है कि जिस बात से डर लगे उस काम को बार बार करना चाहिये। डर को डराते रहो एक दिन डर डर कर भाग जायेगा।
बात नेता की चल रही थी। नेता ही देश की नौका का पालनहार होता है। देश की नौका को खेता है। आज नेता का स्कोप सर्वाधिक है। सभी नेता बनना चाहते हैं। वैसे भी आज हर गली में मोहल्ले में एक नेता की जरूरत है। हर संगठन में, हर समिति में, गांव में देश के कोने कोने में नेता के बगैर कुछ सम्भव नहीं होता है। नेता की परम् योग्यता उसका कुशल वक्ता होना ही है। तब ही प्रश्न पैदा हुआ है कि नेता बनाने की मशीन कैसे बनाये? अगर आपको भी नेता बनना है तो वक्ता बन जाओ। वक्तापन आपको नेता बना ही डालेगा। कल्पना करके देखो कि नेता को बोलना नहीं आता। निंदनीय हो जाएगा। इसलिये वक्ता बनो। वक्ता को कोई बुद्धू नहीं बना सकता। वक्ता को बुद्धू बनाने वाला उसको बुद्धू बनाने के पहले हजार बार सोचेगा। जिसको बोलना आ जाता है उसको जीवन की कला स्वमेव आ जाती है। कहते भी है बोलने वाले का गधा बिक जाता है, नहीं बोलने वाले का घोडा भी नहीं बिकता। बोलना सीखो। बोलना ईश्वर का वरदान है आप बोलकर अपना व्यक्तिगत व्यक्तित्व का विकास कर समाज का विकास कर सकते है। जब आप वक्ता बनते हैं तो आपको चिंतन करना पड़ता है। चिंतनशील होने के लिए आपको पठन पाठन भी करना पढता है। जब कोई बोलना सिख लेता है तो वो चाय बेचने वाला ही क्यों न हो, देश का प्रधान मंत्री बन जाता है। इसलिये बोलिये, अपना मुख खोलिये और जमाने को वैसा बना डालिये जिसकी कि आज जमाने को दरकार है।
केवल चार आदमी जो अपने आप को समाज सुधारक मानते है किसी गांव में जाकर एक सभा में जो पूर्व नियोजित हो, एक अच्छा स्रोता बनकर आ जाए। मुझे लगता है ये प्रक्रम सतत चलता रहे तो हर गाँव में हमारी 10 लोगों की समिति भी होगी और वहां से वक्ता भी पैदा होंगे। पर यह सब बताने की चीज भी नहीं है। इसे अमलीय जामा पहनाने से मुझे लगता है क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा। दरसल हम कहीं भी जाते हैं तो हमने सुनना सीखा ही नहीं भाव यही कि वो क्या बतायेगा? पर मैं कहता हूँ वो बतायेगा। उसकी सुनो तो। आप सुनने को ही तैयार नहीं हो। ऐसे में कैसे बात बनेगी? एक भैंस चराने वाले को कहा जाये कि उसको आज दिनभर अपनी तारीफ करना है, और उसको दिनभर बड़े चाव से सुनना है, तो वो भैस चराने वाला भी दिन भर अपनी तारीफ करते नहीं थकेगा। उसका भी अपना चिंतन होगा। सभी का अपना कुछ न कुछ विशेष चिंतन तो होता ही है।
वक्ता के लिये केवल नेता ही स्कोप नहीं है। वक्ता तो कवि बन सकता है, दार्शनिक, विचारक, संत, गुनी ज्ञानी, ध्यानी या वैज्ञानिक भी बन सकता है। जो मंच पर अपनी बात मुस्तेदी से रख सकता है वो एक बार में हजारों लाखों लोगों को अपनी बात पहुंचा सकता है, इसलिये अच्छा वक्ता बनिये। वक्ता बनने से ही जीवन का सक्ता खत्म हो सकता है। लगातार बौद्धिक शिविर के आयोजन से ही हमारा प्रयोजन पूरा हो सकता है। गांव गांव में अलख जगाने के लिये लगातार हमारे गुनी लोगों को काम करने की जरूरत है। निश्चित ही परिणाम सुखद प्राप्त होगा। हर कर्मचारी को इस प्रकार के समाज हितेषी कार्य के लिये सप्ताह में एक दिन देने की बहुत जरूरत है।
बात बनेगी कब? जब हमको बात बताना आएगा।
बात बनाना है तो हमारे लोगों को बात बताना आना चाहिये।
बात क्या है? मैं बताना चाहता हूँ-
बातों से ही ज्ञान बढे, पंगू भी पहाड़ चढ़े,
बातों से ही हल होता, बातों का सवाल है।।
तोलो मोलो फिर बोलो, जहर यूँ ही न घोलो
वरना जहर होगा, मचेगा बवाल है।।
बातों से ही दम भी है, बातों से ही गम भी है
बातों में ही बम भी है, बातें ही कमाल है।।
भावना सुधारकर, मित्र फिर बातकर
चित्र न बिगाड़ गर, भारती के लाल है।।
-साहेबलाल ‘सरल’
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