नेता जन को चूसते
रक्षक ही भक्षक बने, टूट गई अब आस।
हवा तलक न दिला सके,कैसे हो विश्वास।।
देश के नेताओं से, पुछूं मैं कर जोर।
आखिर विपदा क्यों हुई, भारत में घनघोर।।
कोविद जन्मा था जहाँ, वहाँ नही अब शोर।
पर क्यों अपने देश में,थमे नहीं अब लोर (आँसू)।।
हर पल है भारी बना, पल पल बढ़ता शोक।
नेता जन को चूसते, जैसे चूसे जोंक।।
लाशों की गिनती नही, भरे पड़े शमशान।
फिर भी नेता मौज में,खुद ही बने महान।।
✍️जटाशंकर”जटा”