नेताजी का मिशन-टिकट (हास्य-व्यंग्य)
नेताजी का मिशन-टिकट (हास्य-व्यंग्य)
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
नेताजी इधर से उधर टहल रहे हैं अर्थात कभी इसके घर जा रहे हैं ,कभी उसके घर जा रहे हैं । देखने से तो पता चलता है कि जनता के बीच सक्रिय हैं लेकिन वास्तव में उनका मिशन-टिकट चल रहा है ।
चुनाव में टिकट सबसे बड़ी चीज होती है। जनता का क्या है ,उसे तो मतदान से पंद्रह दिन पहले संभाल लिया जाएगा लेकिन अगर टिकट में चूक गए तो फिर अगले पांच साल बाद मौका मिलेगा । “एक अनार सौ बीमार” वाली बात टिकट के साथ है । एक सीट पर इतने लोग लगे हुए हैं कि संख्या गिनना मुश्किल । सब का भविष्य टिकट पर टिका है । मिला तो पौ-बारह ! नहीं मिला तो बंटाधार ।
पूरी ताकत लगाकर टिकट के लिए जोर-आजमाइश चल रही है। नेताजी सुबह को खद्दर का कुर्ता-पाजामा पहन कर निकलते हैं । दिन-भर टिकट के लिए हाथ-पैर मारते रहते हैं । टिकट मिलने की सारी अर्हताएँ इनके पास हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जितना पैसा कहो ,यह खर्च करने के लिए तैयार हैं। चुनाव में निर्धारित सीमा से चार गुना खर्च करेंगे । साथ ही टिकट लेने में जो “ऊपर का खर्च” आता है ,उसे भी देने से पीछे नहीं हैं। रोजाना सुबह ,दोपहर ,शाम नाश्ता-भोजन आदि का फाइव स्टार खर्च टिकट-प्रदाताओं के साथ यह उठा रहे हैं ।
खैर ,यह तो छोटी छोटी बातें हैं ।असली बात यह है कि जातिगत समीकरण इनके साथ है। सच पूछिए तो इनके पास सिवाय जाति के और कुछ है ही नहीं । उसी के बलबूते पर यह टिकट मांग रहे हैं । कहते हैं कि जातिवाद फैला देंगे और जीत पक्की है । हाईकमान इनके दावों पर गंभीरता से विचार कर रहा है।
यह स्वयं को संभावित प्रत्याशी लिखने से नहीं चूक रहे हैं । विधानसभा क्षेत्र में जगह-जगह हाथ जोड़कर इनके फोटो होर्डिंग के रूप में लगे हुए हैं । नीचे नाम लिखा है । उसके बाद “संभावित प्रत्याशी विधानसभा क्षेत्र” अंकित है ।
सबसे दिलचस्प दौर वह आएगा ,जब नेता जी को टिकट नहीं मिलेगा । मिल गया तब तो ठीक है । पार्टी के वफादार हैं ,पार्टी के सिद्धांतों पर अडिग हैं । लेकिन जैसे ही टिकट की घोषणा होगी और इनका पत्ता कटेगा ,यह मेंढक की तरह अपनी पार्टी से उछलकर किसी दूसरी पार्टी के मंच पर जा पहुंचेंगे । यह जो मेंढक-छाप नेता होते हैं ,यह उछलते बहुत जल्दी हैं । जब तक टिकट की आशा है ,एक पार्टी से घोषित संबंध बनाए रखते हैं । यद्यपि अंदर-खाने की खबर यह भी है कि यह अंदर-खाने ही दूसरी पार्टियों के संपर्क में भी हैं । बस चुनाव की घोषणा होना तथा टिकट घोषित होने की देर है । उसके बाद इन्हें न अपनी टोपी का रंग बदलने में शर्म आएगी ,न कुर्ते का रंग । यह अपने प्रेरणा स्रोत महापुरुषों तक को बदल देंगे । पार्टी का झंडा बदल लेना कौन सी बड़ी बात है ।
————————————————-
लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451