नेताजी (कविता)
मंच पर कोई नेता…
फिर उसके भाषण…
भाषण में कुछ ज़ायकेदार, लच्छेदार बातें
कुछ चुटकुले, कुछ गम्भीर बातें…
अपने बलिदानों के किस्से फिर,
अचानक…अचानक से
उसकी आंखें भर आना…
फिर अपने गमछे से या रुमाल से अपनी आँखें पोंछना।
फिर एक कार्यकर्ता द्वारा उसे पानी के गिलास की पेशकश
वो उसका एक घूंट में पानी पी जाना…
फिर सजल नेत्रों से तुम्हारी तरफ़, भीड़ की तरफ़ देखना
और रुंधे गले से फिर से भाषण शुरू
उसके साथ तुम में से भी लोग आंखों से सजल हो जाते हो
फिर घोषणाओं की बारी….
और हर घोषणा पर तुम्हारी ताली…
फिर अगले चुनाव का ज़िक्र
हाथ जोड़े वो माँगता है तुमसे मदद
और फिर तुम्हारा उसके नाम के साथ ज़िंदाबाद के नारे लगाना
तुम्हारी तालियां, तुम्हारे नारे, तुम्हारा ज़िंदाबाद कहना
सब कुछ पहुंच रहा है उस तक…
बस केवल तुम्हारी एक चीज़ नहीं पहुंचती उस तक…
और वो है…
तुम्हारे…उस भीड़ के ख़ुश चेहरों के अंदर छुपा दर्द।
तुम्हारी आहें, परेशानियां,तुम्हारी नाली, तुम्हारी सड़क
तुम्हारी बीमारियां, तुम्हारी आम समस्याएं
वो तुम्हारी तालियां, तारीफ़ें, नारे ले जाता है
और तुम घर साथ ले जाते हो उसकी घोषणाएं
वो घोषणाएं जो शायद ही धरातल पर उतरें।
एक बात और….
वो जो मंच पे जो कार्यकर्ता था ना?
जो नेता जी के भावुक होने पर उसे पानी पिला रहा था।
वो 20 साल पहले भी कार्यकर्ता था, और आज भी कार्यकर्ता है।
ये नेताजी 20 साल पहले कार्यकर्ता थे
आज राज्य सरकार में मंत्री हैं।
सुनो पदोन्नति के लिए भी
बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं।
Artist Sudhir Singh- सुधीरा की कलम ✍️ से…