Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Dec 2020 · 5 min read

नेताओं के इर्द-गिर्द घूमता और सिकुड़ता लोकतंत्र !!

अपने देश में अब तक पार्टी आधारित लोकतंत्र संचालित हो रहा था, हालांकि नेताओं के प्रभामंडल में तब भी कोई कमी नहीं रहती थी, लेकिन पार्टी में नेता के समकक्ष नेताओं की भी कोई कमी नहीं थी, और उनके व्यक्तित्व से पार्टियां शक्ति प्राप्त किया करती रहती थी, नेताओं में सामान्य मत भिन्नता होने के बावजूद भी एक दूसरे के प्रति दुराग्रह का भाव बोध नहीं महसूस किया जाता था, और जिसे भी पार्टी की कमान सौंपी जाती,सब उसके साथ कदम से कदम मिलाकर कार्य करने में मदद गार की भूमिका का निर्वहन बड़ी ईमानदारी एवं निष्ठा के साथ किया करते।
सबसे पहले कांग्रेस में ही नेता के प्रति अधिक और दल या पार्टी के लिए वफादारी की शुरुआत होने लगी, और यह दौर पंडित जवाहरलाल नेहरु एवं सरदार वल्लभ भाई पटेल के अवसान के बाद मुखर होकर सामने तब आया जब लाल बहादुर शास्त्री जी का जाना हुआ, अब पार्टी में बर्चस्व की जंग ने अंगड़ाई लेनी प्रारंभ कर दी, कांग्रेस दो खेमों में बंटती चली गई, और परिणीति के रूप में कांग्रेस को विभाजन का शिकार होना पड़ा, अब तक पार्टी में दबे छुपे ही लोग किसी नेता के साथ लामबंद हुआ करते थे, लेकिन इस विभाजन ने इस बीमारी को अन्य दलों में भी पंहुचा दिया, और इसका सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी स्वभाव से प्रेरित समाजवादियों ने उठाया! और विभाजित होने के उपरांत इंदिरा गांधी ने इसका लाभ हासिल किया, उनके द्वारा बैंकों के राष्ट्रीयकरण और राजाओं के जेब खर्च/प्रीवी पर्स को बंद करने के बाद कितने ही समाजवादी नेता अपनी पार्टी छोड़ कर कांग्रेस के साथ कनेक्ट होने लगे, धीरे धीरे इंदिरा गांधी ने पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली और अब पूरी तरह से निरंकुश तरीके से शासन सत्ता का संचालन करने लगीं, जिससे स्वाभिमानी स्वभाव के नेताओं ने अपनी असहमति जताई गई के परिणामस्वरूप इन नेताओं के पर कतरने का चक्र शुरू किया गया, ज्यादा विरोध करने पर निष्कासन और कारागार में बंदी बनाकर अपने बर्चस्व को स्थापित करने में जुट गए! जिसका एक दुष्परिणाम यह हुआ कि पहले छात्र आंदोलन की शुरुआत हो गई जिसका नेतृत्व जयप्रकाश नारायण जी जैसे सर्वोदयी ने अपने हाथ में लेकर देशव्यापी आंदोलन में तब्दील कर दिया, परिणाम स्वरूप आपातकाल की नौबत आ गई थी!
आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से विमुख कर दिया गया और विपक्ष के एक समूह को पार्टी में बदल कर सत्ता में काबिज होने का अवसर प्राप्त हो गया, किन्तु आपसी सामंजस्य स्थापित नही रह पाने से सत्ता हाथ से फिसल गई, और कांग्रेस को पुनः शासन सत्ता का संचालन करने का अवसर मिल गया, लेकिन विपक्ष में शामिल लोगों ने पृथक-पृथक अपने अपने स्तर पर पार्टियां गठित करनी प्रारंभ कर दी, यह पार्टियां नेता प्रधान पार्टी बन कर रह गई, किंतु इन्हीं में से एक पार्टी वह थी जिसे दोहरी सदस्यता के कारण अलग थलग करने का प्रयास किया गया था, यह पार्टी भाजपा के रुप में जन्मी, जो कभी जनसंघ के रूप में ख्याति अर्जित कर चुकी थी, इस पार्टी ने अपने सिद्धांतों में थोड़ा परिवर्तन करके समाज वादी चोला ओढ़कर अपना सफर शुरू किया, एवं धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी, इस पार्टी का चेहरा तो अटल बिहारी वाजपेई जी रहे किन्तु पार्टी पर पकड लाल कृष्ण आडवाणी जी की बनी हुई थी फिर भी इन दोनों में एक दूसरे के प्रति दुराग्रह का भाव नहीं था अपितु ये दोनों एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम किया करते रहे, समय-समय पर इनके अध्यक्ष भी बदले जाते रहे, एक प्रक्रिया को अपनाते हुए इन्होने लोकतांत्रिक व्यवस्था को पार्टी में कायम रखा, लेकिन अन्य दलों में पार्टी को परिवार तक सीमित रखने का चलन तेजी से बढ़ रहा था, जिसकी विकृतियां राज्य स्तर पर ज्यादा नुकसान पहुंचा रही हैं!
इंदिरा और राजीव के दौर में पार्टी पर पकड रखने की प्रवृति ने कालांतर में तब ज्यादा दखल देना शुरू किया जब पार्टी को सीता राम केसरी ने गांधी परिवार को नजरंदाज कर दिया, नरसिम्हा राव ने भी गांधी परिवार के निकट सहयोगियों को अलग थलग करने में केसरी की मदद में खड़े रहने से कांग्रेस के अन्य लोग अवाक रह गए थे तब उन्होंने सोनिया गांधी को आगे बढ़ाने का दांव लगाया और पार्टी पर बर्चस्व बनाने में कामयाब हो गए, कुछ समय तक कांग्रेस ने संघर्ष करके अपनी स्थिति सुधारने की कोशिश की और कुछ बाजपेई जी का अतिआत्मविश्वास ने उन्हें पीछे छोड़ दिया और कांग्रेस ने मिलजूल कर सत्ता हासिल कर ली,तब से अब तक कांग्रेस में कोई भी गांधी परिवार से बाहर का व्यक्ति अध्यक्ष नहीं बन पाया, तथा अध्यक्षी मां-बेटे में ही सीमित रह गई, जिसके लिए उसकी आलोचना भाजपा के द्वारा बढ़ा चढ़ा कर पेश की जाती रही है और कांग्रेस इसका मनोवैज्ञानिक रूप से आम जनता की नजर में एक परिवार तक सीमित पार्टी बन कर रह गई है, हालांकि आज भी कांग्रेस में कुछ चापलूस मंडली ने पार्टी में असहजता पैदा कर रखी है किन्तु यह पार्टी अब भी जन सरोकारों से वास्ता रखते हुए अपने दायित्वों का निर्वहन अपनी शक्ति के अनुसार कर रही है, यह अलग बात है कि लोगों में उसके पिछले दस वर्षों की सरकार में हुई गड़बड़ी या गलतियों ने उसके आभामंडल को धूमिल किया है, तथा पार्टी आज अपने पूर्णकालिक अध्यक्ष को तय नहीं कर पाई जिसका नुकसान उसे चुनाव में उठाना पड़ रहा है!
आज जब भाजपा का विस्तार देश के अधिकांश राज्यों में पहुंच गया है और वर्तमान में उसकी केन्द्र और राज्यों में सरकार है तो उसके पीछे नरेन्द्र भाई मोदी जी का तिलिस्म उनकी पार्टी में पकड़ और उनके व्यक्तित्व से प्रभावित लोगों का उन पर भरोसा होने से पार्टी का स्थान उनके बाद में आता है, जो यह इसारा करता है कि अब पार्टी के नाम पर वोट मांगने से ज्यादा अधिक नेता के नाम पर वोट मांगना अधिक उपयुक्त हो गया है, जिसका उदाहरण दो हजार उन्नीस में मोदी जी के नाम पर और ज्यादा मजबूती से सरकार को मिला समर्थन है!
ऐसे में अंन्य दल जो चमत्कारी नेतृत्व से वंचित हैं, वह पिछड़ते जा रहे हैं, इनमें एक ऐसी विचारधारा के दल जिन्हें साम्यवादी दल के रूप में ख्याति प्राप्त थी आज नेतृत्व के अभाव में अप्रसांगिक होते जा रहे हैं, जबकि गरीब गुरबों की, किसान, मजदूर की अस्मिता की रक्षा करने में यही दल आगे बढ़ कर सहायता प्रदान करने में सफल हुआ करते थे, लेकिन आज यह दो तीन राज्यों में सीमट कर रह गए हैं!
अब लोग इन्हें सिर्फ अपनी जरूरतों के हिसाब से इस्तेमाल कर रहे हैं संघर्ष में उनके द्वार पर फरियाद करते हैं और वोट देते हुए हिंदू-मुसलमान, अगडा-पिछडा, ठाकुर -ब्राह्मण , जाति-पाति में बंट कर अपना वोट देकर आ रहे हैं, अपने सुख-दुख में जुड़े रहने वाले लोगों को वह तब नकार कर कहने लगें हैं कि फंला मेरी जाति, धर्म, क्षेत्र,का व्यक्ति है उसे ही जिताने की जिम्मेदारी बन गई है, ऐसे में लोगों के सरोकार से जुड़ने वाले हतोत्साहित होकर घर बैठने को मजबूर हो गए हैं और सरकारें निरंकुश होने की ओर कदम बढ़ा चुकी हैं!
अतः अब जब नेता के चेहरे पर चुनाव होने लगे हैं तब चुनाव प्रक्रिया में परिवर्तन करके सीधे नेताओं को ही चुना जाना चाहिए, और सत्ता का विकेंद्रीकरण करके, स्थानीय निकायों/पंचायत परिषदों को अधिकार संपन्न बना कर, राज्यों में भी नेता के नाम पर वोट मांगते हुए सरकार संचालन का दायित्व निर्वहन किया जाना समय के अनुरूप होगा, और नेताओं को अपने कार्य क्षेत्र में विस्तार करके जन समुदाय से ताल्लुक बनाए रखने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, कोई भी जन प्रतिनिधि अपने नेता के नाम पर जीत कर जाने में कामयाब नही हो पाएगा।

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 8 Comments · 352 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Jaikrishan Uniyal
View all
You may also like:
मैथिली साहित्य मे परिवर्तन से आस जागल।
मैथिली साहित्य मे परिवर्तन से आस जागल।
Acharya Rama Nand Mandal
निरुद्देश्य जीवन भी कोई जीवन होता है ।
निरुद्देश्य जीवन भी कोई जीवन होता है ।
ओनिका सेतिया 'अनु '
हम इतने सभ्य है कि मत पूछो
हम इतने सभ्य है कि मत पूछो
ruby kumari
सुनहरे सपने
सुनहरे सपने
Shekhar Chandra Mitra
पहले पता है चले की अपना कोन है....
पहले पता है चले की अपना कोन है....
कवि दीपक बवेजा
हम तूफ़ानों से खेलेंगे, चट्टानों से टकराएँगे।
हम तूफ़ानों से खेलेंगे, चट्टानों से टकराएँगे।
आर.एस. 'प्रीतम'
विश्व भर में अम्बेडकर जयंती मनाई गयी।
विश्व भर में अम्बेडकर जयंती मनाई गयी।
शेखर सिंह
.......रूठे अल्फाज...
.......रूठे अल्फाज...
Naushaba Suriya
*सब जग में सिरमौर हमारा, तीर्थ अयोध्या धाम (गीत)*
*सब जग में सिरमौर हमारा, तीर्थ अयोध्या धाम (गीत)*
Ravi Prakash
छोटी सी दुनिया
छोटी सी दुनिया
shabina. Naaz
नव्य उत्कर्ष
नव्य उत्कर्ष
Dr. Sunita Singh
कर्णधार
कर्णधार
Shyam Sundar Subramanian
*फूलों मे रह;कर क्या करना*
*फूलों मे रह;कर क्या करना*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
"जंगल की सैर"
पंकज कुमार कर्ण
कविता(प्रेम,जीवन, मृत्यु)
कविता(प्रेम,जीवन, मृत्यु)
Shiva Awasthi
स्कूल कॉलेज
स्कूल कॉलेज
RAKESH RAKESH
वीकेंड
वीकेंड
Mukesh Kumar Sonkar
व्यवहार वह सीढ़ी है जिससे आप मन में भी उतर सकते हैं और मन से
व्यवहार वह सीढ़ी है जिससे आप मन में भी उतर सकते हैं और मन से
Ranjeet kumar patre
दो कदम लक्ष्य की ओर लेकर चलें।
दो कदम लक्ष्य की ओर लेकर चलें।
surenderpal vaidya
दो अपरिचित आत्माओं का मिलन
दो अपरिचित आत्माओं का मिलन
Shweta Soni
घड़ी घड़ी में घड़ी न देखें, करें कर्म से अपने प्यार।
घड़ी घड़ी में घड़ी न देखें, करें कर्म से अपने प्यार।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
किसान,जवान और पहलवान
किसान,जवान और पहलवान
Aman Kumar Holy
बदल जाएगा तू इस हद तलक़ मैंने न सोचा था
बदल जाएगा तू इस हद तलक़ मैंने न सोचा था
Johnny Ahmed 'क़ैस'
"लिहाज"
Dr. Kishan tandon kranti
#कटाक्ष
#कटाक्ष
*Author प्रणय प्रभात*
क्यों हिंदू राष्ट्र
क्यों हिंदू राष्ट्र
Sanjay ' शून्य'
लिख दूं
लिख दूं
Vivek saswat Shukla
2477.पूर्णिका
2477.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
💐प्रेम कौतुक-405💐
💐प्रेम कौतुक-405💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
दिवाली मुबारक नई ग़ज़ल विनीत सिंह शायर
दिवाली मुबारक नई ग़ज़ल विनीत सिंह शायर
Vinit kumar
Loading...