नूरी
” नूरी ”
(लघुकथा)
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सुनसान रात के अंधेरे में दीवार के सहारे एक कोने में दुबकी बैठी “नूरी ” इंसानी वेश में छुपे हुए चार-पाँच भेड़ियों से बचने का प्रयास कर रही थी । तभी किसी बड़े ट्रक ने उसके चेहरे पर तीव्र रोशनी डाली । वह हड़बड़ाई और मुँह से अनायास ही चीख निकल गई । तभी !! उन इंसानी भेड़ियों का झुण्ड भूखे शैतानों की तरह उस पर टूट पड़ा । वह बहुत गिड़गिड़ाई , चीखी , चिल्लाई ,। लेकिन ! आज उसकी आवाज किसी भी इंसान ने नहीं सुनी । आखिर रात के सन्नाटे को चीरती उसकी दर्दनाक आह ! धीरे-धीरे खुद एक सन्नाटा बन गई । क्यों कि उसकी पुकार किसी वजूद को तलाश रही थी ,पर ! तलाश ना सकी । बस ! धीरे-धीरे उसकी आँखें हमेशा के लिए बंद हो गई और अस्तित्वविहीन हो गई नूरी !!
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— डॉ०प्रदीप कुमार “दीप “