नून के साथ अमफक्के
कोरोना का कहर या लॉकडाउन का असर कहिये जनाब कि इसबार ‘आम’ आमलोगों के लिए नहीं रहा ! आम के बच्चे यानी टिकोले वहीं बगीचे में कैद है ! टिकोले को सीतु से जो घायल करते थे, इसबार वो सब बच रहे ! टिकोले को पीस चटनी जो बनाते थे, वो वहीं एक के ऊपर एक
सड़-गल रहे हैं । कोशा भी वहीं है, जिसे चुटकियों से फिसला कर कहते थे- कोशा-कोशा तुम्हारी शादी कौन-सी दिशा ?
फिजिकल डिस्टेंसिंग में यह भी है, सटक सीताराम ! नून के साथ अमफक्का जो खाते थे, स्वप्न में दाँत ‘कसका’ भर रहे जा रहे ! हाँ, इसबार आम ‘आमलोगों’ के लिए नहीं रहा !
हड़ताल तोड़कर अभी-अभी जॉइन किये मिथिलेशवा यही तो 15 दिनों से बड़बड़ा रहे थे-
कहावत भले यह हो कि आम के आम गुठलियों के दाम, कोरोना कहर के कारण ‘आम’ तो गयो भयबा, पर 3 महीनों से वेतन नहीं मिलने के कारण इसबार गुठली भी नसीब में नहीं है भयबा !