नीर सा मन
नीर सा मन वायु सा अंतःकरण हो
है जरूरी स्वस्थ मन का आचरण हो
आइये हम आप मिल कर आज सोचे
किस तरह से संतुलित पर्यावरण हो
हो रही बंजर धरा दूषित हवा जल
घट रहा ओजोन जीवन प्राण का बल
अब नियंत्रित किस तरह इसका छरण हो
आइए हम आप मिलकर आज सोचे
किस तरह से संतुलित पर्यावरण हो
हवा में बढता प्रदूषण रोकना है
गर कोई काटे हरे वन टोकना है
फिर सहज सारा प्रकृति वातावरण हो
आइए हम आप मिलकर आज सोचे
किस तरह से संतुलित पर्यावरण हो
छू सके आकाश यह मानव प्रकृति है
पर नहीं अस्तित्व से बढ़कर प्रगति है
स्वस्थ मर्यादित प्रगति का अनुकरण हो
आइए हम आप मिलकर आज सोचे
इस तरह से संतुलित पर्यावरण हो
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
दसवीं रचना