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12 Jun 2024 · 1 min read

नीरस जीवन

नीरस जीवन

नीरस जीवन अब लगता है।
जिसको देखो रोता है वह।
कल से नहीं कभी सोता वह।
अब न यहाँ कोई हँसता है।

दौड़ रहा है मानव अंधा।
माया के पीछे जाता मर।
लाँघ रहा है सिन्धु भयंकर।
फैलाया है गोरख धंधा।

दौड़ लगाता हांफ रहा है।
क्या यह सचमुच में है जीवन?
अथवा असहज भय का कानन?
यह पागल मन काँप रहा है।

अब जीवन लगता नीरस है।
उर सागर अब नहीं सरस है।।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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