नीति दोहे
माँ बसती हर साँस में , भरती है उत्साह ।
माता के आशीष बिन, पूर्ण न हो हर चाह ।।
जिस घर माँ नहीं रहती, वो घर हैं सुख हीन ।
दीवारें रूठी लगें, धन दौलत भी दीन ।।
उड़ती सबकी नींद है, जब बढ़ जाता कर्ज ।
दूर रोग होता नहीं, जब तक मिले न मर्ज ।।
बात बात पर जो करें, लड़ने की हर बात ।
मौका यह नित ढूँढते, करने को उत्पात ।।
गलत काम नित जो करें, होते है बदमाश ।
जीवन इनका यूँ ढहे, जैसे होती ताश ।।
जिनकी वाणी ओज से, सुनकर टूटे पाश ।
अगर संत ऐसे मिले, हो दुर्गुण का नाश ।।
भू पर किसको सुख मिला, जो तू ढूँढे यार ।
जो ढूँढते है सुख को, पाए दुःख अपार ।।
सच को कौन मिटा सकें, कितने बुन लो जाल ।
मेघ कितना ही ढँक ले, रवि तोड़े हर ढाल ।।
—-जेपी लववंशी, हरदा, म.प्र.