नीड़ तुम्हें भी तो चाहिए
कोरे पन्ने पर डायरी के
कुछ लिख डालो न
भले ही तुम
एक एक शब्द बोलो
मैं स्वयं वाक्य बना लूँगी
तुम
एक एक काँटा बिखेरो
मैं उन्हीं को चुनकर
सलीके से बुनकर
एक घोंसला बना लूँगी
आखिर नीड़ तुम्हें भी तो चाहिए
तुम
इस सच्चाई से
मुँह क्यों मोड़ते हो कि
एक-एक पग चलकर ही हम
मंजिल तक पहुँचेंगे
एक छलांग में नहीं
तुम गुनगुनाओ न
कोई अधूरा गीत
मैं उसे
सरगम से सजा लूँगी
जिंदगी का गीत बना लूँगी
गा लूँगी