नीची निगाह से न यूँ नये फ़ित्ने जगाइए ।
नीची निगाह से न यूँ नये फ़ित्ने जगाइए ।
नज़रें मिलाके यूँ सनम न नज़रें झुकाइए।
दीदार की तमन्ना हसीं रात को भी है,
ख़्वाबों की रह-गुज़र में आ शम्आ जलाइए।
महफ़िल तमाम आज की उनपे है मुल्तफ़ित,
ढलने लगी है रात ‘नीलम’ कुछ गुनगुनाइए ।
नीलम शर्मा ✍️
फ़ित्ने-उथल पुथल
मुल्तफ़ित-आकृष्ट