**नींद क्यूँ रात भर नहीं आती**
**नींद क्यूँ रात भर नहीं आती**
डॉ अरुण कुमार शास्त्री // एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त
गद्य व्यूह
बड़े ही अटपटे से शब्द युग्म चुने मैंने अपनी कथा के शीर्षक के रूप में, शायद आपमें से किसी ने ऐसे शब्द युग्म पर कोई साहित्य देखा पढ़ा हो लेकिन मैंने तो नहीं पढ़ा देखा। मानव मस्तिष्क की सोच का कोई आदि अंत नहीं। कोई सिलसिला ऐसा नहीं जो जीवन के शुरू होने से पहले से शुरू होकर जीवन के समाप्ति तक इस झंझावात से निकल पाया हो।
ऐसा ही है ये जीवन का माया जाल। जी हाँ माया जाल और ऐसा ही है ये शीर्षक * गद्य व्यूह * आप इसको गर्धभ व्यूह भी कह सकते है। अर्थात अटपटा अव्यवहारिक, असहज, अद्भुत , असामाजिक , आदि आदि होने के कारण।
हां तो हम अपने शीर्षक पर आते हैं आपने चक्रव्यूह का नाम तो खूब सुना होगा महाभारत अभिमन्यु के संदर्भ में लेकिन इसके बाद इस से पहले अन्य किसी सन्दर्भ में न सुना होगा कभी, जैसा मेरे लिए है मैंने भी नहीं सुना। लेकिन आज मैंने इसका चयन अपनी कथा के परिपेक्ष्य में किया उसका कोई न कोई लक्ष्य , विधि विधान या फिर सिर्फ इस अबोध बालक ने अबोधिता के चलते किया।
साहित्य में गद्य व् पद्य विधि से रचना धर्मिता को निभाया जाता है कोई साहित्यकार अपनी लेखनी से इन्ही प्रकल्पों में अपनी बात आप तक ले आता है और उसके शब्दों के जाल में बह कर आप पाठक नव रसों का स्वाद लेते हैं। मैं कोई झूठ बोलिया , कोई ना कोई ना ओये कोई ना। अर्थात जब कोई पाठक किसी लेखक के गद्य साहित्य जिसकी अनेक विधाएँ हैं और हो सकती हैं में फँस कर बह कर नव रसों में से किसी एक रस रास में या मिश्रित रस रास के भॅवर या व्यूह में फंसने बहने तरंगित होने मस्त होने लगे तो ऐसे पाठक वृन्द को मेरी सोच अनुसार * गद्य व्यूह * व्याधित कहा जाता है।
प्रिय पाठक वृन्द आप उस अवस्था में इस गद्य व्यूह में फँस के कभी हँसते हो, कभी रोते हो, कभी द्रवित, कभी क्रोधित, कभी चिंतित , कभी श्रृंगार रस में भीग कामुक हो जाते हो, कभी नारी सौंदर्य चांचल्य से चमत्कृत कभी भक्ति विभोर हो कीर्तन करने लगते हो कभी कभी तो एकदम भीभत्स हो किंकर्तव्यं असहाय व् या वीररस से अपने बाहुबल को आंकने लगते हो।
ये सब करने का आपका कोई रोल बस इतना की आपने उस साहित्यकार के * गद्य व्यूह * को कभी भेदने की कला का अध्ययन या शिक्षा ध्यापन नहीं किया हैं ना
अब देखिये पढ़ते पढ़ते आप मेरे इस गद्य के अंत में आ गए और सोच रहे होंगे ये आखिर कहना क्या चाहता है। मैं यही जो ऊपर लिखा है वही कहना समझाना चाह रहा था और आप उस व्यूह में पड़े पढ़ रहे थे।