निसर्ग मेरा मित्र
प्रकृति भगवान की बनाई सबसे अद्भुत कलाकृति है जो उन्होने बहुमूल्य उपहार के रूप में प्रदान की है।निसर्ग और मानव की मित्रता यह एक अमूल्य धरोहर है, जो जीवन में माधुर्य का संचार करती है। प्राचीन काल से ही भारतीय जन–मानस निसर्ग को देवतुल्य मानकर पूजता है।पंचतत्वों से बना यह सुंदर निसर्ग हमें धरोहर में मिला है और इसे संजोग कर रखने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है।
वायुमंडल में होने वाले संपूर्ण क्रियाकलाप प्रकृति के अंगभूत होते हैं,जो निसर्ग को संतुलित बनाए रखते हैं। जब यह संतुलन दैवीय,मानवीय या प्राकृतिक कारणों से बिगड़ता है, तो मानव का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। जैसे कि अभी हम कोरोना महामारी से जुज रहे हैं, वह एक निसर्ग की चेतावनी है, जो मानव जाति को अपने दायरे में रहने का इशारा कर रही है।
आज हम अनेक प्रदूषण और अनुचित कृतियों से निसर्ग को दूषित कर रहे है,किन्तु हमारी माहेश्वरी संस्कृति ने और त्योहार हमे प्रकृति से जुड़ने का संदेश देते है।गणगौर जैसे त्योहार में भी हमें वनस्पति की रक्षणात्मक संस्कृति को बढ़ावा दिया जाता है।
महाभारत में भी कहा गया है,
पुष्पिताः फलवन्तश्च तर्पयन्तीह मानवान् ।
वृक्षदं पुत्रवत् वृक्षास्तारयन्ति परत्र च ॥
अर्थात, फल और फूल देने वाले वृक्ष मनुष्य को तृप्त करते हैं और वृक्षारोपण करने वाले व्यक्ति को परलोक में तारण भी वृक्ष ही करते हैं।
हमें निसर्ग का संतुलन बनाए रखने के लिए भूमि,आकाश ,नदिया और समुद्र को प्रदूषण से बचाए रखना है। हाइड्रो–पावर और सौरऊर्जा इस तरह के विकल्प जिस से बिजली उत्पन्न हो सकती है, जिससे नैसर्गिक संसाधनों का रक्षण हम कर सकते हैं। रीसाइक्लिंग जैसी प्रक्रिया से हम साल में कई लाख पेड़ों को बचा सकते हैं।
अत्याधुनिक जीवन पद्धति जीते हुए भी हमें अपने नैसर्गिक मूल्यों का जतन करना है। जिससे हम मानव तथा निसर्ग के मित्रता का संतुलन हमेशा बनाए रखें और मानवता पर कोई आँच ना आने दे।