निश्चल प्रेम
प्रेम की कोई परिभाषा नहीं बनी, सबकुछ उदाहरण पर ही डिपेंड है। प्रेम जितना किया जाता है उतना बाकी रहता है। प्रेम टूटने से बचाता है। हार जाने से रोकता है! प्रेम में आप उलझेंगे और निकल नहीं पाएंगे। आरोप लगाएँगे पर सजा न दे पाएंगे। बोलेंगे बहुत कुछ पर कह कुछ न पाएंगे। प्रेम विषय नहीं है। जिनको ऐसा लगता है कि समझ मे आ गया दरअसल वो उससे उतना ही दूर होता चला गया। प्रेम जिया जाता है किया नही जाता।
प्रेम मल्लब तुम होता है! मै होता हूँ! हम होता है! हर बार! बार बार! लगातार! प्रेम दुःख भी है और सुख भी! प्रेम बस वक्त़ में घूमता वक्त़ से परे एक एहसास है! जिसने जिया वो मरा! 💖