निवाला
लघुकथा
निवाला
अखबार पढ़ते हुए मनीष ने सफेदी के लिए आए हुए मजदूरों के साथ उस युवती को छिपी नज़र से देखा । वह अपने बच्चे को कितने प्यार से खाना खिला रही थी।
पूरा जीवन एक रील की तरह आंखों के सामने से गुजर गया। पिता के जाने के बाद मां और मनीष दोनों ही जीवन को भरपूर तरह से जी रहे थे।माँ ने पापा की कमी महसूस नही होने दी और न मनीश ने माँ का ख़्याल रखने में कोई कमी रखी । नौकरी भी लगी तो उसी शहर में। कभी माँ उस को खिलाए बिना ना खाती ।धीरे-धीरे नौकरी में बढ़ती जिम्मेदारियां समय के दबाव में वह साथ खाने का सिलसिला कम होता चला गया ।शादी के बाद और भी कम हो गया । कभी-कभी अपने हाथ से एक दूसरे को खिला पाने का मौका ना वह छोड़ता न हीं माँ ।आज इसलिए उस युवती और बच्चे को देखकर फिर माँ याद आ गई,( भूला ही कब था )। माँ के खिलाए निवाले में क्या सिर्फ खाना होता था, मनुहार प्यार संतुष्टि ना जाने कितना सुख था।
सहसा कॉल बेल बजी ,सोनिया बिटिया ऑफिस से जल्दी आ गई थी। शिवानी ने चाय बनाई साथ-साथ चाय पीते पीते ढोकला सोनिया के मुंह में खिलाने लगा तो सोनिया चिहुक उठी ,”क्या पापा ….”
ढोकले का निवाला मुंह में रखते हुए बोली” आज दादी बहुत याद आ रही हैं”।
बेटी और पापा दोनों की आंखें नम हो आई थी ।
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित