निर्लज
खेलत खावत मौज से, पूत बढाये केश।
काहें तुमको डर लगे, पूछे सारा देश।।
पूछे सारा देश, बोल कहाँ है आपत्ति।
आज अचानक बदल के, बाराह देखे बिपत्ति।
नही सुहाए मान, तो काहे दण्ड पेलत।
चला जा तू नासिर, कहि और हँसते खेलत।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २१/१२/२०१८)