निर्धनताक गोद मे प्रतिभाक बीज
कथा १
” निर्धनताक गोद मे प्रतिभाक बीज”
अहाँ सभ के समक्ष ई कथा भाग कय यथा भाग १,भाग २ …….रुपेण प्रस्तुत करब तैं प्रत्येक भाग सँ सँपर्क में रहब। कथा भाग१ आरंभ।
अभिषेक आजु पहिल दिन अपन आँफिस जा रहल छथि,प्रसन्नावस्था में अपन माँ के समक्ष जा चरण स्पर्श करैत छथि, माँ त आशीर्वाद दय अपन सपूत के ऐना गला लगबैत छथि जेना अहि अवसरक इन्तजार बेचारी कुन युग सँ करैत छलीह, विधवा भेलोपरांत जे अपन धैर्यक ,आओर साहसक परिचय देलनि वो आजुक नारी के बीच मे सम्मानीय आ पूज्यनीय योग्य छैथ।बेटा के समक्ष खुशी के आँसू बेचारी बचा नय सकली आ आँखि सँ खुशी के आँसू छलैक गेलनि ,अभिषेक अपन माँ के ई आँसू देखैत भूतकाल में कखन चलि जायत छथि आओर कखन अतीत में समा जायत छथि पता नय……
अभिषेक के याद अबैत छन वो सब दिन जहिया अभिषेक के बहिन विवाह योग्य भय गेल छली आ अभिषेक मात्र सातवीं कक्षा के छात्र छलाह। अभिषेकक बाबुजी हिनका सब के गाँवक परिवेश मे रखैत खूब मेहनत मजदूरी करैत छलाह आ जे कमायत छलाह परिवार पर मन सँ खर्च करैत छलाह मुदा ताहु पर गरीबी अपन स्थान अहि परिवार पर पूर्ण रुपेन रखने छल, अभिषेक जे पढ़ाई मे होशियार छलाह, बाबुजी अभिषेकक प्रतिभा सँ अत्यन्त प्रसन्न छलाह खास कऽ जखन अभिषेक कक्षा मे प्रथम अबैत छलाह त बाबुजी गदगद भ जायत छलाह , बाबुजी पुत्र संग अपन बेटी के शिक्षा पर सेहो खर्च करैत छलाह। अभिषेकक बाबुजी गाँव मे पंडित काका सँ मशहूर छलाह, पंडित काका नाम सँ पंडित मुदा छलाह अनपढ।अनपढ भेलोपरांत ईमानदारी , आ कर्मठताक वो भंडार छलाह।जखन पंडित काका के भाग्य के बारे में सोचैत छी त अश्रु धारा सागर मे परिणत भय जायत अछि, हालांकि भाग्य के ऊपर इ थोपैत यथोचित नय लागि रहल अई मुदा जखन परिश्रम के अनुसार उचित लाभ नय भेटैत अछि त मन निश्चय ही भाग्य पर सभटा थोपैत अछि।
पंडित काका तीन भाई छलाह जाहि में सबसँ छोट पंडित काका स्वयम छलाह, पंडित काका के ज्येष्ठ सन्तान पुत्री छली जे ओही समय मे समाजक प्रचलित प्रथानुसार बेटी प्रतिभावान होइतो पिताक कार्य व बाहरी कार्यक कुनू सहयोग मे बाधित छली।
अभिषेक गाउँ के माध्यमिक स्कूल सँ ग्रेजुएशन तक जे कठिनाई देखलाह आओर संघर्षरत रहला वो आजुक नवयुवक हेतु प्रेरणा के पात्र छथि।जेना की ऊपर सूचित काएल गेल कि अभिषेक प्रतिभावान छात्र प्रारंभे सँ छलाह संगे कक्षा मे अव्वल अबैत छला,ई सब देखैत आखिरकार कुन पिता नय खुश भय सपना देखता, पंडित काका के अपना कम जमीन छलन्हि तैं दोसरक खेत बटैया लय खेती करैत छलाह आ मेहनत कय जीवन निर्वाह करैत छलाह।
एक दिन अभिषेक अपन काका जे सुखी संपन्न छलाह,के खेत बाटे अपन स्कूल जाईत छलाह कि तखने अभिषेकक नजर ओही खेत मे काज करैत मजदूर पर पड़लन्हि संगे खेतक आड़ि पर छाता लगोने हुनकर काका बजैत छलाह – पंडितवा सबगोटे आबि जो रोटी आबि गेलौ,अभिषेक गाछक छाँव मे ठाढ़ भय देख लगलाह,जाहि मे देखैत छथि ओही मजदूरक संगे हुनकर बाबुजी ज़े उघारे देह पसीना सँ तर बतर भेल गमछा सँ पसीना पोछैत छलाह आ कहय लगलाह–भैया यौ , हमरा अखन भूख नय अई लाउ हम अपन गमछा मे बान्हि लैत छी बाद मे खा लेब,अतेक सुनैत अभिषेकक काका बजलाह—रै तूँ त भोरे सँ काज कय रहल छै,हम बुझैत छियौ तू अभिषेकवा लेल ल ज़ेबें,सुन तू खा ले हम आँगन मे अभिषेक लेल पठा देबौ।ई सब देखैत आ सुनैत अभिषेक गाछक छाँव मे ठाढ़ भेल फूटि फूटि कय कानय लगलाह आ सोच लगलाह–आब हम बुझलौं जे माँ बाबुजी आ दिदी राति कय भात खाईत छलाह आ हमरा कहैत छला–बौआ अहाँ के रोटी निक लगैत अई ,रोटी खाउ,। कि ताबेत मे अभिषेक के स्कूलक घंटी के आवाज ऐलनि कि तुरंत अभिषेक अश्रु भरल आँखि के पोछैत स्कूल के लेल प्रस्थान केला।
(शेष दोसर भाग में)