निरोध
निरोध (पंचचामर छंद)
निरोध चित्तवृत्ति का हुआ नहीं तो व्यर्थ है।
पवित्र चित्तवृत्ति ही अमूल्य कोश अर्थ है।
समर्थवान है वही निरुद्ध वृत्ति जो करे।
कुकृत्य से सुदूर हो सदैव पाप से डरे।
सहर्ष योग साधना सदैव स्वस्थ भावना।
गिरे न लोक सिन्धु में कदापि शुद्ध कामना।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।