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10 Jan 2018 · 1 min read

निरीह बालक

मुक्तक
१.
पथ में सोता रहा मै यूं ही रात भर ,
मुझे देखा किसी ने नहीं आंख भर।
मै तड़पता रहां ठंढ बेधती रही,
चर्चा मंदिर व मस्जिद चली रात भर।।

२.
लोग आते रहे लोग जाते रहे,
अपने धुन की ही बंसी बजाते रहे।
एक नजर भी किसी ने न देखा मुझे,
अपने मस्ती वो गुनगुनाते रहे।।

३.
कितनी बेगानी थी आज सामों शहर,
मेरे विपदा की थी ना किसी को खबर।
साम ढलती रही ठंढ बढती गई,
मेरे बेवशपने की ना कोई कदर।।

४.
काश इंसान की रुह मरती नहीं,
बेवशी इस कदर मुझपे चढती नहीं।
फिर न बेवश कोई मुझसा रहता यहाँ,
बेवशी इस कदर फिर भटकती नहीं।।

५.
ऐं खुदा एक नजर अबतो देखो मुझे,
मेरी गलती है क्या वो बतादो मुझे।
मैं भी बालक हूँ तेरा तुझे है खबर,
माफ करदो गले से लगालो मुझे।।
……
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

Language: Hindi
547 Views
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