*निराकार भाव* (घनाक्षरी)
निराकार भाव (घनाक्षरी)
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भाता है जो मिला निराकार भाव जीवन में
अब न अभाव का प्रभाव कुछ आता है
आता है समझ यही उचित जो हो रहा है
बुद्धि को न मन यह भ्रम में लगाता है
गाता है कृपा जो मिली नभ-सी असीम वाली
मस्तक हो नत बार-बार झुक जाता है
जाता है न लघु के आकार की शरण में ये
काल-महाकाल भाव इसको लुभाता है
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(उपरोक्त रचना सिंह विलोकित छंद में है।
(1)इसमें प्रथम पंक्ति का प्रथम शब्द ही आखिरी पंक्ति का आखिरी शब्द है।
(2) प्रत्येक पंक्ति का अन्तिम शब्द अगली पंक्ति का पहला शब्द है)
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451