निरर्थक
हूँ अपनों का चहेता मै निरर्थक सामान की तरह
फिर भी आ जाता हु सामने मजबूरियों की तरह
जब जरुरत समझी सजा लिया गुलदान की तरह
वरना पड़ा रहा किसी कोने में फूटे बर्तन की तरह
ड़ी. के. निवातियाँ……..@@@
हूँ अपनों का चहेता मै निरर्थक सामान की तरह
फिर भी आ जाता हु सामने मजबूरियों की तरह
जब जरुरत समझी सजा लिया गुलदान की तरह
वरना पड़ा रहा किसी कोने में फूटे बर्तन की तरह
ड़ी. के. निवातियाँ……..@@@