निमंत्रण वेटर की
दरअसल स्नातक की पढ़ाई पूरी कर जब मैं अपने गांव बड़ा मोतीपुर लौटा। यह गांव पश्चिम चंपारण (बेतिया) जिले के, बैरिया प्रखंड के, पखनाहा डुमरिया पंचायत में है। लौटा तो गांव में घूमने, दोस्तों के साथ मिलने, शादी विवाह समारोह में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसी क्रम में मैंने गांव की एक शादी समारोह में शामिल हुआ तो देखा कि वहां पर खाने वाले बहुत लोग हैं पर खिलाने वाले कोई नहीं हैं। लड़की के पिता बेचैन थे बेचारे बारात के दिन ही गांव वालों को भी खिला रहे थे। इधर बारात आ पहुंची थी कुछ ही देर में द्वार पर पहुंचने वाली थी। इस परिस्थिति को देखते हुए मैंने अपने दोस्तों को बुलाया और लोगों को खाना खिलाने के लिए तैयार शुरु कर दिए। बस व्यवस्थित रूप से हमलोगों ने गांव वालों को एवं बाराती आए लोगों को भोजन करा दिए।
इस तरह से अब अगले दिन से पूरे गांव में जब भी किसी के यहां बारात आता था तो उसके दो-तीन दिन पहले ही लड़की के पिता आकर के कह जाते थे कि आप अपनी टीम के साथ मेरे यहां शादी समारोह में उपस्थित रहिएगा और बारातियों का सेवा एवं देखरेख आप ही करिएगा।
इस तरह से अब पूरे गांव में एक ट्रेंड से चल चुका था जब भी किसी के यहां शादी समारोह पड़ता। वे लोग हमें कह जाते थे। गांव में गांव वालों एवं बारातियों को भोजन कराना यह बेटर के जैसा ही काम था पर यह निशुल्क था। खैर, हमें भी इस तरीका का सेवा करने का सौभाग्य बहुत दिनों के बाद प्राप्त हुआ था। इस तरह से हमारी एक टीम गठित हो गई थी। जिससे हमें और हमारी टीम के सभी सदस्यों को इस तरह का कार्य करने में आनंद मिलता था। इसमें जितने भी हमारे टीम के सदस्य थे “वे सभी शिक्षित तो थे ही साथ में संघ परिवार से जुड़े थे”, जिससे और भी इस कार्य को करने में रुचि मिलती थी क्योंकि संघ में यही सिखाया जाता है कि समाज में रह करके समाज की सेवा किस तरीका से कर सकते हैं? और वही सेवा हम लोग निशुल्क कर रहे थे।
इसी क्रम में एक दिन एक हिंदू दलित परिवार से “वेटर के लिए निमंत्रण” आया। विशेष रूप से यह निमंत्रण इसलिए आया था क्योंकि यह लड़की के पिता हिंदू दलित परिवार से आते थे, जिसके कारण इनकी यह मजबूरी थी की इनके यहां बहुत सारे अन्य वर्गों के लोग भोजन करने जाते तो थे पर उनके परिवार का या उनके जाति का कोई सदस्य भोजन कराने में सम्मिलित नहीं होता था तभी वे लोग भोजन करते थे। इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने उस लड़की के पिता के सामने एक शर्त रखी और उस शर्त को रखने के बाद मैंने निमंत्रण पत्र स्वीकार किया। शर्त यह थी की हम और हमारी टीम आपके यहां शादी समारोह में उपस्थित होकर के गांव वालों एवं बाराती वाले लोगों को भोजन कराएगा एवं करेगा पर हमारी टीम के साथ आप के परिवार एवं जाति से कुछ युवा लोग रहेंगे और वे लोग भोजन कराने के पूरे क्रम में हमारी मदद करेंगे। हो सकता है कि कुछ लोग इसका विरोध करेंगे। मान लिजिए 100 में से 20 व्यक्ति ऐसे होंगे जो इसका विरोध करेंगे और आपके यहां भोजन नहीं करेंगे। इससे आपको कोई एतराज तो नहीं न है। उस हिंदू दलित लड़की के पिता ने कहा मुझे कोई एतराज नहीं है, बस आप जैसे चाहे वैसे गांव वालों एवं बाराती लोगों की सेवा करें हम आपकी सेवा से संतुष्ट है। अगर आप हमें समाज के सभी वर्गों के साथ जोड़ना चाहते हैं तो इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता है?
बस वह दिन आया और शर्तों के अनुसार हमारी टीम एवं कुछ हिंदू दलित युवा उपस्थित हुए और अपने कार्य में लग गए। मेरे दिशा निर्देश के अनुसार गांव वालों को भोजन कराने लगे। भोजन कराते समय शुरु में तो कोई दिक्कत नहीं आया पर भोजन के मध्यान समय से कुछ विरोधाभास देखने को मिलने लगा। कुछ लोगों ने पता लगाने लगे कि किसके कहने पर ऐसा यह सब हो रहा है तो उसी में से कुछ लोगों ने मेरे तरफ इशारा किए। तो यह लोग मेरे पास आकर के ऐसा नहीं करने को कहा पर मैं काहे को मानने वाला, मैंने तो संघ से सामाजिक समरसता का शिक्षा प्राप्त किया था। बस उसको वास्तविकता में बदलना था और यही कर रहे थे। जब मैंने समाज कि उन एका-दुका लोगों के बातों को नहीं माना तो वे लोग हमारी टीम के सदस्यों को और कुछ जो हिंदू दलित युवा भोजन चला रहे थे उनको प्रत्यक्ष रूप से चलाने से मना करने लगे। अब वे लोग हमारे पास आकर कहने लगे कि कुछ लोग हम लोगों को चलाने से मना कर रहे हैं। हमने तुरंत उनकी हौसला बुलंद की और उन्हें कहा कि तुम लोग चुपचाप चलाते रहो और जो लोग तुम लोगों को मना कर रहे हैं उन्हें हमारे पास भेज दो।
बस था क्या? ऐसा ही होने लगा। अब फिर विरोध करने वाले हमारे पास आने लगें। हमने उन सभी लोगों को अनेक तरह का उदाहरण देकर के समझाएं और कहा आप ही बताइए जैसे आपका लड़का पढ़ा लिखा है, साफ सुथरा है वैसे ही यह भी पढ़े लिखे हैं, साफ-सुथरे हैं तो फिर दिक्कत किस बात की है? आपके अनुसार यह लोग हिंदू दलित परिवार से हैं, साफ सुथरा है फिर भी यह लोग नहीं चला सकते हैं। ठीक है! मान लेता हूं। लेकिन वह कहां तक उचित है? जब किसी बड़े जाति का होकर भी साफ सुथरा नहीं हो, पोटा चुवा रहा हो और वह लड़का पानी चलाएं, गिलास चलाएं, पता चलाएं और भोजन चलाएं। यह ठीक, नहीं न है! तो फिर?
आप चौक चौराहे पर जाते हैं और उस चौराहे पर दलित के द्वारा खोला गया दुकान में नाश्ता करते हैं, चाय, पानी पीते हैं। तो वहां पर आपको कोई दिक्कत नहीं है, तो फिर उसी परिवार के यहां जब जग परोजन पड़ रहा है तो किस बात की दिक्कत हो जा रही है? जबकि खाना बनाने वाला भनसिया खाना बना रहा है। जैसे आपके यहां तुलसी जल दिया जाता है वैसे ही इनके यहां भी है।
इस तरह से उदाहरण देने के बाद अब जो 20% लोग विरोध कर रहे थे उसमें से मात्र 5% वैसे लोग रह गए जो विरोध करते रह गए और भोजन नहीं किए लेकिन फिर भी इतना विरोध के बाद अब 95% लोग भोजन किए और सभी ने सामाजिक समरसता की बातों को सम्मान कियें।
इस तरह से वो रात गुजर गई और उसके अगले दिन से मेरी टीम की तारीफ होने लगी, साथ ही समाज में सामाजिक समरसता का विस्तार होने लगा। इससे कुछ लोगों ने यहां तक कह डाला कि इस सामाजिक समरसता की सफलता का श्रेय संघ एवं संघ से जुड़े लोगों की है। जिनके वजह से इतने पुराने भेदभाव इस वर्तमान समय के समाज से दूर करने में इन लोगों का बड़ा योगदान रहा और इस तरीका से धीरे-धीरे समाज से छुआछूत समाप्त हो गया। आज इस गांव के सभी वर्गों का लोग एक समान दिखते हैं। एक साथ उठते, बैठते, घूमते, फिरते हैं। आप देख करके या पता नहीं कर सकते हैं कि कौन निम्न वर्ग का है और कौन उच्च वर्ग का!
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लेखक – जय लगन कुमार हैप्पी⛳