महक तुम्हारी हमें साँवरे ….
नित सुबह आती है , नित शाम आती है
याद तुम्हारी हमें साँवरे दिन रात आती है ।
हर सहर भाती है , हर पहर भाती है
महक तुम्हारी हमें साँवरे हर लहर भाती है ।
हर भवन आती है , हर नगर आती है
छवि तुम्हारी हमें साँवरे हर डगर आती है ।
हर पल सताती है , हर क्षण सताती है
स्मित तुम्हारी हमें साँवरे हर पग सताती हैं ।
हर सुख जगाती है , हर दुख समाती है
डग तुम्हारी हमें साँवरे हर पथ दिखाती हैं ।
डॉ रीता