नित यौवन
यौवन तो बस युद्ध है ,लड़ते तन-मन रोज
घिरा हुआ जीवन यहाँ ,अपने को नित खोज ।।
अपने को नित खोज ,सभी हैं सब अनुरागी ।
जीवन झंझा चित्त ,धरे कितने वैरागी ।।
कहे सुधा कर जोर ,चरित गढ़ता अब रावन ।
ध्वस्त भाव हैं सभी ,जूझता है नित यौवन ।।
यौवन तो बस मौज है ,बहे हुए हैं सब धार ।
मिलता न कभी पार है ,छूटे सभी आधार ।।
छूटे सभी आधार ,धरे डगमग पाँवों को ।
भरा हुआ है द्वंद्व ,सभी खोए भावों को ।।
कहे सुधा कर जोर ,आँख से बहता सावन ।
भ्रमित हुआ है ज्ञान ,हतप्रभ है अब यौवन ।।
यौवन तो संज्ञान है ,भरा हुआ लालित्य ।
दिन-दिन यह खिलता रहा ,भरता उजास नित्य ।।
भरता उजास नित्य ,भाग्य को खुद से हेरा ।
गढ़ता मन को घेर ,किया है स्वयं सबेरा ।।
कहे सुधा कर जोर ,लक्ष्य रखता इंवेंशन ।
जूझा हर पल ज्ञान ,हुआ सार्थक अब यौवन ।।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा ‘
वाराणसी ,©®