निजी विचार
मेरे मन में विचार कौंधते हैं,
जो मेरी अन्धं-अकीदत तोड़ते हैं,
कभी कण की भातिं सूक्ष्म,
कभी असि की भातिं तीक्ष्ण,
कभी निसेनी की भातिं डगमग,
कभी जैसे सिरात अल मुस्तकी़म,
कभी त्रसित करते हैं निष्ठा की इतिश्री हो न जाए,
कभी श्रध्येय होने का मोह भाये,
कभी असुर से निकृष्ट, कभी सुर से उत्तम ,
कभी प्रज्ञा को बांधे, कभी दुविधा से मुक्ति दिलाए,
कभी अप्रकृष्ट,कभी शोभन,कभी शिथिल,कभी तत्पर बनाऐ
चिन्तनशील प्रवृत्ति है विचार आये जाए,,