— निजीकरण वक्त की मांग है —
आज चारों तरफ से एक आवाज सुनाई देती है, वो है निजीकरण.जी हाँ यह बात बात न रह कर , सच में निजीकरण करने पर विवश कर रही है ! जिधर देखो , सरकारी तत्र में बैठे हुए लोग , अपने पद का सदुपयोग अपने हित , अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं ! आज किसी भी सरकरी कार्यालय में देख सकते हो, ज्यादातर कर्मचारी दामाद बन कर जिन्दगी गुजार रहे हैं ! काम कम उस से ज्यादा मस्त जिन्दगी जी रहे हैं ! लोग परेशान हैं, उनकी कितनी सुनी जाती है , थक हार कर वो लोग इन के दफ्तरों के चक्कर लगा लगा कर दुखी हो जाते हैं ! क्या सारा वक्त इन सरकारी कर्मचारिओं के पास ही है, एक तो मोटी मोटी नाख्वाह लेते हैं , काम के नाम पर लोगों को परेशान कर के रख देते हैं , आये दिन हड़ताल की धमकी देते हैं ! इनके पेट इतने बड़े हो गए हैं, कि इनका काम अपनी तनख्वाह में से नही चलता, वहीँ एक प्राईवेट कंपनी में काम करने वाला भोग विलासिता की चीजों पर खर्च न करके , बामुश्किल अपने परिवार का भरण पोषण करने में जिन्दगी बिता देता है,!!
सब से ज्यादा तो मैने यहाँ तक देखा है, कि सरकार ने सरकारी स्कूल क्यूं खोल रखे हैं ? उनका क्या काम है, सिर्फ और सिर्फ स्कूल का रख रखाव करना, अनाज देना बच्चों को , प्रधान के नीचे रहकर काम करना, कागजों की खाना पूर्ती करना, 50 से 60 हजार तक तनख्वाह देना मास्टर जी को , चुनाव में डयूटी लगार कर काम करवाना, और जिस काम के लिए स्कूल खोले कि बच्चों को पढाया जाए, उस के नाम पर जीरो ? क्यूं ? किस लिए इतना बड़ा खर्चा कर रही है सरकार ?? पैसे की बर्बादी के सिवा कुछ नही हांसिल हो रहा है !!
रिश्वत को पहले बड़े तीखे अंदाज से देखा जाता था, आज क्या रिश्वत ली या दी नही जा रही , आप अपना ड्राइविंग लाईसेन्स बनवाने के लिए जाईये, आपको खुद पता चल जाएगा, कि आपका लाईसेंस सरकारी फीस के हिसाब से बनेगा या दलाली के द्वारा बनेगा, एक चपरासी तक तो वहां का रिश्वत के बिना फाईल तक को नही खोलता, तो क्या वहां बैठे बाकी कर्मचारी आप से सीधे मुंह बात कर लेंगे , सरकार कहाँ तक लगाम लगाएगी इन पर !!
कहने को देश में कोर्ट का निर्माण इस लिए हुआ ताकि आम आदमी को इन्साफ मिल सके, पर उस को इन्साफ तो क्या मिलेगा, वो खुद इन्साफ की भीख मांगता मांगता जिन्दगी से दूर हो जाता है, अपना समय, अपना पैसा, अपना घर , अपनी साँसों तक को गिरवी रखकर केस के लिए दिन रात एक कर देता है, और उच्च पड़ पर बैठे जज लोग, उस को अगली तारीख का रास्ता दिखा कर घर का रास्ता दिखा देते हेई, क्यूं ?? क्या है यह ? कैसे और कब मिलेगा इन्साफ, , क्यों परेशान किया जाता है, क्यूं वो इंसान दर दर का भिखारी बन जाता है, कौन सुनेगा उस की..??
बहुत से हैं ऐसे विभाग, नगर निगम.. सड़क निर्माण,.बिजली विभाग .ग्राम विकास, आदि .. ऐसे ही सब के सब विभाग निजीकरण की श्रेणी में आने पर खुद बा खुद विवश हो रहे हैं, आप जनता के लिए बैठे हैं, न कि अपने स्वार्थ के लिए काम करने के लिए आते हैं ! केवल फ़ौज को छोड़ कर , हर विभाग का निजीकरण सरकार को कर देना बेहद जरुरी हो गया है ! फ़ौज ही एक ऐसा विभाग है, जिस के लिए उस को २४ घंटे तैनात रहना पड़ता है, और बाकी के सरकारी विभाग में आप एक फ़ोन कर लो, जवाब यही मिलेगा अरे भाई यह क्या समय है , फ़ोन करने का , दफ्तर के समय में काल किजीये .हो सकता है ऐसा जवाब आपको कभी न कभी किसी न किसी सरकारी कर्मचारी के द्वारा सुनाने को जरुर मिला होगा !!
कोई भी सरकार आये , उस को अब निजीकरण कर ही देना चाहिए, अच्छा लगेगा दुनिया को यह कठोर कदम पर काम करते देखना , जब समझ आ जायेगी, कि इतने दिन तक जो आनन्द लिया, उस का असली स्वाद क्या होता है !! जब निजीकरण हो जाएगा, तो अवश्य की अच्छा ही होगा और सरकार का पैसा भी बचेगा , तथा सकून भी मिलेगा !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ