निगाहें न फेरो
*गीत
आधार छंद शैल (मापनी युक्त वर्णिक)
वर्णिक मापनी- लगागा लगागा लगागा लगाल
निगाहें न फेरो करो खूब प्यार ।
न मानो कभी प्रेम में जीतहार।।
लिए सात फेरे सजी थी बरात ।
जुड़ा था उसी वक्त सारा समाज।।
कभी थी सुहानी हसीं एक रात।
गुलों में खिली थी अनोखी बहार।।
बड़ी व्यस्तताएं, रहे आप दूर।
हुए आज दोनों पराए हुजूर।।
बड़ी आज पीड़ा,हुआ क्यूँ मलाल
भला दो दिलों में पड़ी क्यों दरार।।
लवों पे हँसी हो, रहे मस्त चाल।
रहे हाथ में हाथ, रूठे न साल।।
खुशी जिंदगी में मिलेगी जरूर।
अहं को जला डालना एक बार।।
स्वरचित/मौलिक
जगदीश शर्मा सहज
अशोकनगर