निःशब्द
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प्रणाम मित्रो,
आज की पश्चिम चकाचौंध मे उलझी युवापीढ़ी के दोर-ए-हालात पर लिखा एक गीत……… ;;
“” निःशब्द””
आज तु सब कुछ खो बैठा हैं….!!!
शब्द भंवर मे उलझा है मन..,
देह मे खुद को न पाता मन..,
आज नही हैं तु खुद तुझमे..,
बस अपने को रो बैठा हैं…!!
आज तु सब कुछ खो बैठा हैं….!!!
क्या गाना और क्या न गाना..,
क्या पाना और क्या न पाना..,
कर्म आज है ओझल होते..,
आँख खोलकर सो बैठा हैं…!!
आज तु सब कुछ खो बैठा हैं….!!!
जीवन का सूना गलियारा..,
आँखो मे छाता अंधियारा..,
जीवन के आधार धर्म को..,
निज कर्मो से धो बैठा हैं…!!
आज तु सब कुछ खो बैठा हैं….!!!
“कान्हा” तुझसे कहता सुनले..,
कर्म भक्ति की राह तु चुनले..,
दमक उठेगा तेरा जीवन..,
अंधकार में क्यों बैठा हैं…!!
आज तु सब कुछ खो बैठा हैं….!!!
?सर्वाधिकार सुरक्षित ?
कान्हा सोनी………. ✍