निंदा और निंदक,प्रशंसा और प्रशंसक से कई गुना बेहतर है क्योंक
निंदा और निंदक,प्रशंसा और प्रशंसक से कई गुना बेहतर है क्योंकि ये सोचने का पुनःअवसर देता है ।सोच समझ से की गई कृति अमर हो जाती है और निंदक भी प्रशंसक में बदल जाते हैं।
टी.पी. तरुण