ना मुझे बिहारी कहना प्यारे,
ना मुझे बिहारी कहना प्यारे,
नहीं, ये मेरा बिहार नहीं है।
कल संस्कार, शिक्षा, ज्ञान बाँटा,
आज प्रतिकृति ओझल बनी है।
इतिहास सच्चा थोड़ा दिखाते,
शीशे से सब क्षेत्र बाँटते।
क्या मानूं ये बिहार हमारा?
दिल ने कहा, ये सत्य नहीं है।
वृद्ध चश्मे से दरारें दिखतीं,
स्वार्थ के खेल यहाँ सजते।
कवि तुम्हारे पाँव हैं कब्र में,
मुखौटे झूठे हर ओर लगे।
रात नींद कहाँ अब सोते हो,
दिनभर दिखता नकली उजाला।
संस्कृति की भाषा, संस्कारों से,
नाता टूटा, बोलो ये कैसा?
बिहारी शब्द बने हैं गाली,
क्या तुमने यह सोचा प्यारे?
ना मुझे बिहारी कहना प्यारे,
नहीं, ये मेरा बिहार नहीं है।
वैशाली के खंडहर चीखें,
विद्यापति के गीत सिसकते।
अपनों की धूल उड़ गई है,
ओझल मेरा बिहार हुआ है।
बिहारी कहना अब गंदी बात,
काटिल वन आज गौरव बना
ना मुझे बिहारी कहना प्यारे,
नहीं, ये मेरा बिहार नहीं है।
—-श्रीहर्ष—-