ना तुझ में है, ना मुझ में है
ना तुझ में है, ना मुझ में है
काबिलियत इतना कि
समुद्र की गहराइयों से
विश्वास के मोती निकाल ला सके
तुझे गुरूर है अपने गुरूर पर
और मुझे गुरूर है अपने गुरूर पर
महफिल सजा लो लाखों पर
तन्हाई में भी लिखती उन बातों पर
महफिल में भी तन्हाई साथ होती है
जब दर्द सीने में दफनाई जाती है।