ना जाने क्यों ?
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ना जाने क्यों ?
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चंदा सूरज पूछ रहे थे ,ना जाने क्यों ?
प्यार तुम्हारा- सच्चा लगता है!
चलती राह निहार रहे थे सारे राही –
प्यार हमारा सच्चा लगता है !!
कोयल आयी बाग छोड़कर ,
और आमों की अमराई –
मुक्त कंठ उस ने भी गाया –
प्यार तुम्हारा सच्चा लगता है !
तन्हाई बेहाल हो गयी,
जब से तेरा साथ मिला !
संग बेचारा शर्मिन्दा है ,
उसका मन कुछ कहता है !!
दिन में दिन तो कट जाता है ,
रात बेचारी रोती है !
सपनों से उम्मीद शेष है ,
सपना अपना लगता है !!
सपना यदि अपना हो जाये,
इस से अच्छा क्या होगा !
अपना भी अपना हो जाये ,
तब जग अपना लगता है !!
मेरा प्यार लगे अपना सा ,
और लगे वह सच्चा भी –
तब तो सब कुछ सफल बनेगा ,
तुम को कैसा लगता है ?