‘ ना जाने किस भेस में नारायण मिल जाए ‘
ट्रेन अपनी रफ्तार से चली जा रही थी अपनी चित्रों की प्रदर्शनी करके घर वापस लौट रही सुकन्या सामने बैठे व्यक्ति के लिए नतमस्तक हो रही थी । कुछ देर पहले की ही बात थी… ट्रेन में सब आपस में बातचीत कर रहे थे वेंडर चाय का थर्मस लेकर आया…सुकन्या ने सामने वाले व्यक्ति से पूछा अंकल चाय ? उन्होंने हाँ में जवाब दिया , चाय के साथ सुकन्या ने अपने हाथ का बना सूखा नाश्ता भी उनको दिया , उसे खाते ही उनके मुँह से निकला अरे वाह बेटी तुम्हारा हाथ तो पेंटिंग और नाश्ता दोनों में बहुत अच्छा है । थैंक्यू अंकल वैसे लोग कहते हैं की मैं खाना भी बहुत अच्छा बनाती हूँ इंडियन , कॉंटिनैंटल सब तरह का ।
बात होने लगी तो उन सज्जन ने बताया की वो लंदन के किसी स्टील फर्म में उचे ओहदे पर हैं और उनका सपना है अपने देश – शहर में एक शानदार इटैलियन रेस्टोरेंट खोलना । पता नही उनको सुकन्या में ऐसा क्या दिखा की उन्होंने सुकन्या से कहा ‘ बेटी मेरा तुम्हारा कोई रिश्ता नही है अभी से पहले मैं तुमको जानता तक नही था , लेकिन मेरा मन तुम पर विश्वास करने को कह रहा है हमारा शहर भी एक है क्या तुम मेरे सपने को साकार करने में मेरा साथ दोगी ? पैसा मेरा जिम्मेदारी तुम्हारी ‘ सुकन्या को कानों पर विश्वास करना मुश्किल हो रहा था उसने अपनी गर्दन हाँ में हिला दी ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )