ना जाने कहाँ खो गए
दिल में उठे ज़ज्बातों को खत में लिख दिया।
अपनी प्रेयसी को मैंने आज एक खत लिख दिया।।
प्यारी को प्यारी लिखा तो एक सिहरन सी होने लगी।
आगे और क्या लिखूं मैं सुध बुध सी खोने लगी।।
खत को कोरा छोड़कर अंत में नाम अपना लिख दिया।
अपनी प्रेयसी को मैंने आज एक खत लिख दिया।।
खत को मोड़ कर पता जब मैं लिखने लगा।
नाम लिखा था बस मैंने धुंधला सब दिखने लगा।।
उसके पते का पता न था ईश्वर का नाम लिख दिया।
अपनी प्रेयसी को मैंने आज एक खत लिख दिया।।
आज भी दिल उसके बिछुड़ने का यथार्थ नही मान रहा।
इधर उधर खोजते हुए मैं उसका नाम पुकार रहा।।
वो छोड़ उस दुनिया में गयी है हर दीवार पर लिख दिया।
अपनी प्रेयसी को मैंने आज एक खत लिख दिया।।
दिल में उठे ज़ज्बातों को खत में लिख दिया।
अपनी प्रेयसी को मैंने आज एक खत लिख दिया।।