नाहक ही ख्वाब में जी कर क्या करेंगे ,
नाहक ही ख्वाब में जी कर क्या करेंगे ,
यूं ही मसर्रत ए जाम भी तो नहीं पिया जाता ।
जब बुझ गए अरमान और टूट गया शीशा ए दिल ,
हमसे अब खाक और शीशे के टुकड़ों को समेटा नहीं जाता।
नाहक ही ख्वाब में जी कर क्या करेंगे ,
यूं ही मसर्रत ए जाम भी तो नहीं पिया जाता ।
जब बुझ गए अरमान और टूट गया शीशा ए दिल ,
हमसे अब खाक और शीशे के टुकड़ों को समेटा नहीं जाता।