नाशवान एवं अविनाशी
जीवन भ्रम है और मृत्यु सत्य है।
ब्रह्मांड में मौजूद कोई भी पदार्थ परिवर्तन के लिए प्रवृत्त होता है और अंततः परिवर्तित हो जाता है ।
अर्थात् कभी भी एक ही स्थिति में नहीं रह सकता है , यानी अविनाशी होना।
मृत्यु के बाद शरीर का भौतिक रूप ऊर्जा के सूक्ष्म अदृश्य रूप में बदल जाता है अर्थात् आत्मा,
जिसे नग्न आंखों से कभी नहीं देखा जा सकता है , लेकिन उसके अस्तित्व को महसूस किया जा सकता है।
कुछ मामलों में यह दिखाई दे सकता है यदि यह उपस्थिति के छद्म भौतिक अपसामान्य रूप में परिवर्तित हो जाता है, जिसे आमतौर पर भूतिया दिखावे के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
जिसमें मस्तिष्क पर मतिभ्रम प्रभाव (hallucination) के समान दृश्य प्रभाव पैदा करके चुनिंदा व्यक्तियों द्वारा सीमित रूप से देखा जाता है, लेकिन ये दृश्य मतिभ्रम नहीं बल्कि प्रेरित प्रभाव हैं। जो मानव मस्तिष्क पर व्यक्तिपरक आधार पर अपसामान्य शक्तियों द्वारा मौजूदा स्थिति में उनकी उपस्थिति का आभास देने के लिए बनाये जाते हैं।
मृत्यु के बाद तथाकथित ऊर्जा आत्मा एक विशेष अवधि के लिए वातावरण में तब तक रहती है जब तक कि उसे युग्मनज के भौतिक रूप में परिवर्तन के लिए जगह नहीं मिलती है ,जो कि शुक्राणु और निषिक्तांड(oospore) के संलयन के परिणामस्वरूप बनता है जो नवजात बच्चे के रूप में विकसित होता है।
मध्यवर्ती चरण जिसमें ऊर्जा मौजूद है वह अपसामान्य रूप है।
इसलिए हमें नाशवान और अविनाशी का वास्तविक अर्थ समझना होगा, कि नाशवान उस अवस्था का अंत है और अविनाशी का अर्थ है दूसरी अवस्था में परिवर्तन।