नारी
हर बार एक पुरूष को गलत ठहराना उचित नहीं है। इसमें कहीं ना कहीं हम महिलाएं भी शामिल हैं। एक कहावत हमारे समाज में फैली हुई है कि एक औरत की सबसे बड़ी दुश्मन एक औरत ही होती है। मैं इसे सही भी मानती हूं क्योंकि जो महिलाएं सक्षम हैं उनमें से ज्यादातर अन्य औरतों के बारे में ना तो सोचती और ना ही सहयोग करती। तो कैसे हम सब सक्षम हो पाएंगी। जब तक हम अपनी हर अच्छाई, बुराई, पीड़ा, दर्द अपने पति को, अपने पिताजी को, अपने भाई और अपने बेटे को खुलकर नहीं बताएंगी तो वो कैसे हमारे दर्द को महसूस कर पाएंगे। जब तक हम अपने बेटे और बेटी को अलग अलग परवरिश देंगी तो कैसे हमारा बेटा अपनी पत्नी को समझ पाएगा। बचपन से ही हम रसोई का काम अपनी बेटी से करवाएंगी तो कैसे हमारा बेटा अपनी पत्नी का रसोई के काम में हाथ बंटा पाएगा। एक महिला की ईच्छा शक्ति का कोई मुकाबला नहीं होता, अगर वह ठानले तो कुछ भी असंभव नहीं है। बच्चों के प्रति ममता, ससुराल के रिती रिवाज और अनजाने माहौल में ख़ुद को ढालने के लिए धैर्य, दिन रात परिवार वालों के लिए मेहनत, पति को परमेश्वर मानकर समर्पण, मां बाप, सास ससुर को हमेशा खुश रखने की ईच्छा शक्ति, बच्चे को पैदा करने की ताकत, माहवारी में भी लगातर काम करने का संघर्ष और इन सब बातों से सन्तुष्ट होकर प्यारे से चेहरे पर मुस्कुराहट सिर्फ हम यानि एक जगत जननी औरत ही रख सकती है। इसलिए मायूस न होकर गर्व से कहो
ना मैं अबला
ना ही बेचारी,
सारे जग पर
मैं अकेली भारी,
ना मैं आश्रित
ना मैं दुखियारी
गर्व से बोलूं आज
मैं हूं एक नारी।
डॉ मीनू पूनिया
Dr.Meenu Poonia