नारी
नारी के इस दर्द को , कौन सका पहचान
जननी होकर सृष्टि की, मिला नहीं वो मान
मिला नहीं वो मान , बँटी केवल रिश्तों में
रही चुकाती क़र्ज़ ,प्यार देकर किश्तों में
मगर अर्चना आज, रीत बदली हैं सारी
लिए नया अब रूप, खड़ी है देखो नारी
डॉ अर्चना गुप्ता