नारी!
अबला से सबला की ओर बढ़ चली है। लेकिन आज भी मन पर गढ़ी चली है।
आज भी दहेज की बलि पर चढ़ीं है।दो दिलों के बीच में एसिड से जली है।
घरों में अब भी सुरक्षित नहीं है। आजाद होकर भी हथकड़ी से जकड़ी है।
पूजते जिसे हम सदियों से चलें है। लेकिन आज भी पुत्र भी मां को छले है।
परिवार के लिए आज भी समर्पित है। फिर भी पुरुष के मन पर हमेशा बसी है।