नारी
नारी
तुम भावों का अनुबंधन हो।
तुम नातों का अभिनंदन हो।
करुणा श्रध्दा प्रेम सिंधु तुम।
जगतीतल का केन्द्र बिन्दु तुम।
विश्व भुवन में तुम मधुवन हो।
तुम स्निग्ध स्पर्श हो रति का।
तुम औषध हर हृदय क्षति का।
नारी तुम पावन चिंतन हो।
परमेश्वर की अनुपम कृति तुम।
सर्व विदित सुंदर प्रकृति तुम।
नूतन युग का नव जीवन हो।
तुम सिया सी साधिका हो।
विरह दग्धा राधिका हो।
वनिते! जग का मूल्यांकन हो।
रत्नगर्भा मणीमयी तुम।
अति मृदु दृढ़ अतिशयी तुम।
संस्कृत भूतल का आंगन हो।
अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ, सबलगढ(मुरैना)