नारी
नारी (वीर रस)
कोमल कली सहज नारी है,सदा समर्पित शुद्ध विचार।
बच्चों की सेवा – रक्षा कर,उनमें भरती शुभ संस्कार।
भोजन देती कपड़े सिलती,सुख सुविधा का रखती ख्याल।
बनी हुई है घर की शोभा,अति मोहक गृह की रखवाल।
लेकिन फिर भी सदा उपेक्षित,भाव-स्वप्न का नहीं महत्व।
तब भी हार नहीं वह माने,है संघर्षशील शिव तत्व।
अपने आँसू सतत पोंछती,सदा खड़ी रहती दिन-रात।
मौन स्वयं रहती है नारी,सहती रहती है आघात।
नारी ऐसी ताकत होती,लाये सामाजिक बदलाव।
अंधकार में बनी रोशनी,दे परिजन को मधुरिम छांव।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।