नारी
हे पुरुष तुम नारी के कब होगे आभारी ।
ये आधी आबादी पूरी आबादी की जननी है।
स्त्री-पुरुष में बंटवारे की हमने ही खिंच दी रेखा है
सच कहना सच सुनना नहीं चाहते हम ।
अखबारों के पन्नों पर तारीफों पुल बांधे है ।
वेलेंटाइन डे वुमंस डे हर वर्ष मनाते हैं
घर की नारी आज भी तेरी झिड़की के बोझ की मारी है
हे पुरुष तुम नारी के कब होगे आभारी।
नारी श्रम को कमतर मत आंकों खुद से ।
घर आफिस का दोहरा बोझ उठाती है ।
उस पर भी कभी पीटी तो कभी गालियों से नवाजी जाती है।
चुप रहकर सहनशीलता का पाठ पढ़ाती है ।
घर स्वर्ग रहे इसी प्रयत्न में खुद को खपाती है ।
छोटे बड़े हर काम का बोझ सहर्ष उठाती है ।
हे पुरुष तुम नारी के कब होंगे आभारी