नारी शक्ति
हे! मृदु स्वर लहरी बदल, कर भीषण संहार।
लाज बचाने के लिए , करो तेज तलवार।। १
कोमलता को त्याग दो, धर रणचंडी रूप।
जीभ तृप्त कर रिपु लहू, लेकर खप्पर कूप।।२
आभूषण को त्याग कर,करो शस्त्र श्रृंगार।
नारी चिन्गारी बनो, कर दो रिपु को क्षार।। ३
आँखों में बिजली भरो, कण-कण में अंगार।
असुर मर्दिनी बन करो, दुष्टों का संहार।। ४
रौद्र रूप धारण करो, तन को करो कराल।
अस्त्र-शस्त्र से लैस हो, बनो प्रलय का ज्वाल।।५
भर लो सूरज को नयन, फूटे अंग प्रकाश।
जहाँ पाँव तेरे पड़े, टूट गिरे आकाश।।६
कोटि-कोटि झाँसी बनो, हो दुर्गा का बोध।
प्रलय अग्नि भर लो नयन, महाकाल का क्रोध।।७
आँखों में ज्वाला लिए, पहन मुंड के माल।
असि- खप्पर ले हाथ में, धरो रूप विकराल।।८
समर भूमि में पग बढ़ा, रिपु को ठोकर मार।
प्रहर युद्ध का आ गया, हो जाओ तैयार।।९
रणचंडी रिपुमर्दिनी, ले लो हाथ कटार।
काँप उठे जल थल गगन, ऐसा करो प्रहार।। १०
फूट पड़े ज्वाला सभी, दो कस कर ललकार।
काँप उठे फिर असुर दल, बन जाओ खूंख्वार।।११
प्रलय मचा दो युद्ध में, हो जाओ तैयार।
बढ़े चरण तेरी जिधर, गूँजे जय-जयकार।।१2
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली