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24 Apr 2022 · 1 min read

नारी विमर्श के दोहे

नारी के उत्कर्ष का , बहुत हुआ गुणगान ।
क्या अब तक भी मिल सका , उसको समुचित मान ।

हाथ प्रेम की तूलिका, वर्ण पिटारी संग ।
जीवन में नारी भरे , सुख के सौ सौ रंग ।।

अनाचार सहती रही , युग युग से हर बार ।
नारी ने फिर भी किया, मानवता से प्यार ।।

होठों पर मुस्कान रख , बांट रही अनुराग ।
नारी सहती ही रही, असमदृष्टि की आग ।।

दया, धर्म या वीरता, शिक्षा, प्रेम- सुवास ।
नारी ने हर क्षेत्र में , रचा नया इतिहास ।।

चुटकी भर सिंदूर पर , अर्पित करती प्यार ।
प्यार, त्याग, ममता भरा, नारी का संसार ।।

बहुत अधिक बदली नहीं, नारी की तस्वीर ।
उसके हिस्से आज भी , वे ऑसू , वह पीर ।।

ठगी रह गयी द्रोपदी, टूट गया विश्वास ।
संरक्षण कब मिल सका , अपनों के भी पास ।।

प्रतिफल की इच्छा नहीं, नहीं दंभ का शोर ।
सन्नारी थामे हुए, सम्बन्धों की डोर ।।

मानवता के पक्ष में, नारी का हर रूप ।
छाया है वह धूप में, जाड़े में शुभ धूप ।।

– त्रिलोक सिंह ठकुरेला

Language: Hindi
316 Views
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