नारी रूप
प्रथम रूप
मां के रूप में ईश्वर का अवतार हो तुम
सहलाने और दुलारने वाला प्यार हो तुम
तुम्ही तो सृष्टि को चलाने का माध्यम हो
जग जननी हो सबकी पालनहार हो तुम
द्वितिय रूप
अर्धांगिनी हो सम्मान की अधिकारी हो तुम
दो परिवारों को जोड़ने वाली नारी हो तुम
घर परिवार की लक्ष्मी रूप कहलाती हो
किसी की ननद जिठानी या देवरानी हो तुम
तृतिय रूप
बहन बड़ी हो तो माँ छोटी बेटी समान होती है
भाइयों के लिए तो राखी का त्योहार होती है
लड़ती हैं झगड़ती हैं रूठती हैं मान जाती हैं
आंगन सूना कर जाती जब घर से बिदा होती हैं
चतुर्थ रूप
बेटी बन कर जब कोख से बाहर आती है
दुनिया भर के सारी खुशियां छा जाती है
एक औरत जन्म देकर तुम्हें माँ बनती है
पिता के लिए तो पापा की परी कहलाती है
पंचम रूप
किसी की बेटी जब बहु बन कर घर आती है
नई जिंदगी जीने का अरमान लेकर आती है
बहु रूप है मगर धर्म की बेटी ही तो होती है
एक बेटी बिदा हो तो बहु रूप में वो आती है
नारी प्रताड़ना की वस्तु नही अपितु हर रूप में सम्मान की हकदार है।