नारी मंथन
****** नारी-मंथन ******
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नारी चाहती सुन्दर काया।
होनी चाहिए पर्स में माया।
चाँद – चकोरी रंग की गौरी,
कोमल जैसे सूत की डोरी,
देख पुरुष ने गीत गाया।
नारी चाहती सुन्दर काया।
छैल-छबीली देह है कंचन,
चतुर नार करती रहे मंथन,
रूह माँगती सुरक्षित साया।
नारी चाहती सुन्दर काया।
धूप – छाया सी रंग बदलती,
हर घर में रहे उसकी चलती,
रंग-रूप का जाल बिछाया।
नारी चाहती सुन्दर काया।
मनसीरत के समझ ना आई,
कुदरत ने कैसी चीज़ बनाई,
गम का लड्डू खुद ही खाया।
नारी चाहती सुन्दर काया।
नारी चाहती सुन्दर काया।
होनी चाहिए पर्स में माया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)